वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी |
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वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी – धरती पर जीवन के विकास के सफर को समझने के लिए हमें लाखों-करोड़ों साल पहले की वनस्पतियों की संरचना को देखना होता है। वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | इस संदर्भ में, पुरा-वनस्पति विज्ञान का महत्व बढ़ जाता है।



भारत में, जब भी हम इस विज्ञान की चर्चा करते हैं, प्रोफेसर बीरबल साहनी का नाम सबसे आगे आता है। बीरबल साहनी को भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान, यानी इंडियन पैलियो बॉटनी के पिता माना जाता है। उनका क्षेत्र न केवल भूविज्ञान में था, बल्कि वे पुरातात्व में भी दिलचस्पी रखते थे।

जीवन परिचय – वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | डॉ. बीरबल साहनी भारतीय पुरावनस्पती विज्ञान के प्रमुख अनुसंधानकर्ता थे। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले जीवावशेषों की गहन अध्ययन की। वे न सिर्फ एक प्रमुख भूवैज्ञानिक थे, बल्कि पुरातत्व में भी उन्हें विशेष दिलचस्पी थी।

लखनऊ में ‘बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ़ पैलियोबॉटनी’ की स्थापना भी उनके प्रयासों से हुई। भारतीय वनस्पतियों की संरचना और उनके जीवावशेषों के अध्ययन में उनका योगदान अद्वितीय है। वे न केवल विज्ञानी रूप में अपने योगदान देने वाले थे, बल्कि बीरबल साहनी नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज, भारत के अध्यक्ष और इंटरनेशनल बोटैनिकल कांग्रेस, स्टॉकहोम के मानद अध्यक्ष भी रहे।

प्रारंभिक जीवन – वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | 

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | बीरबल साहनी का जन्म 14 नवम्बर 1891 को पाकिस्तान के अबकी शाहपुर जिले के भेङा गाँव में हुआ था। उनके पिता प्रो. रुचीराम साहनी, एक प्रमुख विद्वान और समाजसेवक थे। भेङा गाँव की प्राकृतिक सुंदरता और वहाँ के पहाड़ी दृश्य बालक बीरबल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रुचीराम साहनी की उच्च शिक्षा और वैज्ञानिक प्रवृत्तियों का असर बीरबल पर भी हुआ था, जिससे उन्हें प्रकृति और वनस्पतियों की ओर आकर्षित होने लगा।

बीरबल के परिवार में, मोतीलाल नेहरु, गोपाल कृष्ण गोखले, सरोजिनी नायडू और मदन मोहन मालवीय जैसे प्रमुख राष्ट्रीय नेता अक्सर आते-जाते रहते थे, जिससे उन्हें राष्ट्रवादी विचार और संविधानिक मूल्यों की भी अच्छी समझ होती थी।

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शिक्षा – वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | 

बीरबल साहनी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर के सेन्ट्रल मॉडल स्कूल से प्राप्त की और बाद में गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी, लाहौर तथा पंजाब यूनिवर्सिटी में उच्च शिक्षा की। उनके पिता लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज में प्रोफेसर थे। बीरबल ने प्रसिद्ध वनस्पति विज्ञानी प्रोफेसर शिवदास कश्यप से वनस्पति विज्ञान की पढ़ाई की। वह 1911 में पंजाब विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. में सम्मानित हुए।

जब वे कॉलेज में अध्ययनरत थे, तब भारत में स्वतंत्रता संग्राम शूरू हुआ था। बीरबल की आजादी की लड़ाई में रुचि थी, लेकिन पिता की इच्छा के सम्मान में, उन्होंने इंग्लैंड में उच्च शिक्षा पूरी की। 1914 में, वे कैंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक बने और फिर प्रोफेसर ए. सी. नेवारड के मार्गदर्शन में शोध में लगे। 1919 में, उन्हें लन्दन विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ़ साइंस की मानद उपाधि मिली।

बीरबल साहनी ने अपनी शिक्षा के अगले पड़ाव में म्यूनिख जाकर प्रमुख वनस्पति शास्त्री, प्रो. के. गोनल के मार्गदर्शन में अध्ययन किया। उनका पहला शोधपत्र “न्यू फाइटोलॉजी” में प्रकाशित हुआ, जिससे उन्हें वनस्पति विज्ञान में पहचान मिली। वही साल उनका एक और शोधपत्र प्रकाशित हुआ जिसमें “निफरोनिपेस बालियो बेलिस” का विश्लेषण किया गया था।

उन्होंने “क्लिविल्स” पर शोध किया और उसे “शिड्बरी हार्डी” पुरस्कार के लिए प्रस्तुत किया। 1917 में, इस शोधपत्र को “न्यू फाइटोलॉजी” में प्रकाशित किया गया।



बीरबल साहनी की प्रतिभा और समर्पण इतने अद्वितीय थे कि वह अपनी शिक्षा को विदेश में छात्रवृत्ति के माध्यम से पूरा कर पाए, माता-पिता के आर्थिक सहारे के बिना। लन्दन की प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी ने भी उनके शोध कार्यों को समर्थन दिया।

करियर – वैज्ञानिक बीरबल साहनी 

डॉ. बीरबल साहनी विदेश में अनेक प्रमुख वैज्ञानिकों से मिले। लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट से सम्मानित किया और 1919 में वे भारत वापस लौटे। उन्होंने बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय में शिक्षण में योगदान दिया, लेकिन 1921 में उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र विभाग के प्रमुख के रूप में नियुक्ति मिली।

कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने उनके अद्वितीय शोध को मान्यता दी और 1929 में उन्हें Sc. D. से सम्मानित किया। प्रो. साहनी को प्रायोगिक पठन से अधिक मैदानी अध्ययन पसंद था। उन्होंने भारतीय सिन्धु सभ्यता के विभिन्न स्थलों का अध्ययन किया और अनेक महत्वपूर्ण शोध निष्कर्ष प्रस्तुत किए।

वे न केवल एक अध्येता थे बल्कि छात्रों और अन्य वैज्ञानिकों के प्रति उत्साही भी थे। उन्होंने बीरबल साहनी संस्थान की स्थापना की और उसके विकास के लिए विश्व के विभिन्न देशों का दौरा किया।

जब 1947 में उन्हें भारतीय शिक्षा सचिव के पद का प्रस्ताव मिला, तो उन्होंने उसे विनम्रता से अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उनका ध्यान केवल वनस्पति विज्ञानं पर था।

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | सम्मान और पुरस्कार

प्रो. बीरबल साहनी वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक योगदान दिया, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित और मान्यता प्राप्त हुई। वे 1930 और 1935 में विश्व पुरा वनस्पति कॉंग्रेस के उपाध्यक्ष के रूप में चुने गए। भारतीय विज्ञान कॉंग्रेस ने भी उन्हें 1921 और 1928 में अपना अध्यक्ष बनाया। वे दो बार, 1937-38 और 1943-44 में राष्ट्रीय विज्ञान एकेडमी के प्रमुख भी बने। 1929 में, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने उन्हें Sc. D. से सम्मानित किया और 1936-37 में वे लन्दन के प्रतिष्ठित रॉयल सोसाइटी के फैलो बने।

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | व्यक्तिगत जीवन

1920 में विदेश से लौटकर, बीरबल साहनी की शादी पंजाब के प्रमुख रायबहादुर सुन्दरदास की बेटी सावित्री से हुई। सावित्री ने उनके जीवन में और उनके वैज्ञानिक प्रयासों में अहम भूमिका निभाई।

1948 में, अमेरीका के यात्रा के बाद, डॉ. साहनी की तबियत खराब हो गई और उनकी सेहत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। अफसोस की बात है कि 10 अप्रैल 1949 को उन्हें हृदय घात हुआ और इस महान ज्ञानी का दीदार इस जगत से हो गया।




बचपन से रहा प्रकृति से लगाव

डॉ. बीरबल साहनी का जन्म 14 नवंबर, 1891 को अब के पाकिस्तान में स्थित शाहपुर जिले के भेड़ा गांव में हुआ था। प्रकृति के प्रति उनकी रुचि बचपन से ही प्रगढ़ थी। उनके पिता रुचिराम साहनी, जो कि एक प्रमुख विद्वान और समाजसेवक थे, ने उन्हें विज्ञान और अध्ययन की दिशा में प्रेरित किया।

घर में ज्ञानवर्धक और वैज्ञानिक माहौल की वजह से मोतीलाल नेहरू, गोपाल कृष्ण गोखले, सरोजिनी नायडू, और मदन मोहन मालवीय जैसे महापुरुषों से उनकी मुलाकात होती रही।

बीरबल साहनी ने पंजाब विश्वविद्यालय से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की और फिर कैंब्रिज जाकर इमैनुएल कालेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1919 में, लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टर ऑफ साइंस की मान्यता प्रदान की। उनका प्रथम शोध पत्र ‘न्यू फाइटोलाजी’ में प्रकाशित हुआ, जो उन्हें वनस्पति विज्ञान में प्रमुख पहचान दिलाने में सहायक बना।

हर तरह की वनस्पतियों पर शोध

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | प्रोफेसर बीरबल साहनी को प्रयोगशाला की दीवारों के अंदर बंधन से अधिक प्राकृतिक वातावरण में अनुसंधान करना पसंद था। उन्होंने आरंभ में जीवित वनस्पतियों पर गहरा अध्ययन किया, जिसके बाद उन्होंने भारत के वनस्पति जीवाश्मों पर ध्यान केंद्रित किया।

उनके अध्ययन जीव विज्ञान की विभिन्न शाखाओं पर थोस आधारित थे। भारतीय गोंडवाना और कश्मीर के प्राचीन पेड़-पौधों का उन्होंने विस्तृत अध्ययन किया, जिससे वे पौधों के विकास की गहरी समझ प्राप्त कर सके।




साहनी जी का योगदान वनस्पति जीवाश्म विज्ञान में नई जींस की खोज तक महसूस होता है, जिससे हमें प्राचीन और आधुनिक पौधों के बीच संबंध की समझ मिलती है। 1919 में भारत वापस आने पर उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में कार्य किया।

फिर, 1921 में लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रमुख रूप में नियुक्त किया, जहां उन्होंने जियोलॉजी के विभाग की भी स्थापना की और इसका नेतृत्व किया।

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी | भू-विज्ञान में दिलचस्पी

प्रोफेसर बीरबल साहनी का योगदान जीवाश्म पौधों की जगत में महत्वपूर्ण है। उन्होंने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, सिंधु घाटी सभ्यता और झारखंड के राजमहल पहाड़ियों से प्राप्त जीवाश्मों के विवेचन में अद्वितीय खुलासे किए।

उन्होंने जुरासिक युग के वनस्पति जीवाश्मों के अध्ययन से विकासशीलता और पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान किया। ‘होमोजाइलोन राजमहलिंस’ और ‘साहनीआक्सीलोन राजमहलिंस’ जैसी नई प्रजातियों की खोज से उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय में अपनी पहचान स्थापित की।

भारतीय विज्ञान समुदाय में उनके अद्वितीय योगदान को मानते हुए भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने ‘बीरबल साहनी पदक’ की स्थापना की।

उनका सपना एक पैलियोबोटनी संस्थान की स्थापना का था, जिसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1949 में शुरू किया। हालांकि, प्रोफेसर साहनी इसे साकार होते देख पाने से पहले ही चल बसे, लेकिन आज भी लखनऊ में स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट उनके सपनों और प्रयासों का साक्षी है।

पुरूस्कार और सम्मान  – Birbal Sahni Awards

प्रो. बीरबल साहनी ने वनस्पति विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान दिया जिसकी प्रशंसा पूरी दुनिया में हुई। वे 1930 और 1935 में अंतरराष्ट्रीय वनस्पति विज्ञान सम्मेलन के उपाध्यक्ष बने। भारतीय विज्ञान संग्रहालय में उन्होंने 1921 और 1928 में अध्यक्ष की भूमिका निभाई। वे 1937-38 और 1943-44 के दौरान राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के प्रमुख थे। 1929 में, कैम्ब्रिज ने उन्हें Sc. D. की मानद उपाधि से नवाजा। और 1936-37 में वे रॉयल सोसाइटी के फैलो के रूप में चुने गए।

मृत्यु

वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी |  जब बीरबल साहनी 1948 में अमेरिका से भारत लौटे, उन्हें स्वास्थ्य में कमजोरी महसूस हुई। उनकी तबियत में गिरावट के कारण डॉक्टरों ने उन्हें अल्मोड़ा में आराम करने की सलाह दी।

हालांकि, उनकी प्रतिबद्धता और संस्थान के प्रति समर्पण इतना था कि वे लखनऊ में ही अपने कार्य में व्यस्त रहे। दुर्भाग्यवश, 10 अप्रैल 1949 को उन्हें हृदयघात हो गया और वे हमारे बीच से चले गए।




निष्कर्ष – वैज्ञानिक बीरबल साहनी की जीवनी

मित्रों, हमें आशा है कि बीरबल साहनी के जीवन परिचय की जानकारी आपको पसंद आई होगी। अगर आपके पास श्रीनिवास रामानुजन के जीवन संबंधित कोई प्रश्न हो, तो कृपया कमेंट सेक्शन में हमें बताएं। अगर आपको हमारी इस जानकारी पसंद आई हो तो कृपया इसे आगे शेयर भी करें। धन्यवाद!

 

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